पागल दौड़: गांधी | Mad Rush Gandhi
पागल दौड़: गांधी | Mad Rush Gandhi पागल दौड़ अपनी आवश्यकताएं बढ़ाते रहने की पागल दौड़ में जो लोग आज लगे हैं, वे निरर्थक मान रहे हैं कि इस तरह खुद अपने सत्त्व में वृद्धि, अपने सच्चे ज्ञान में वृद्धि कर रहे हैं, उन सबके लिये " हम यह क्या कर बैठे ?” ऐसा सवाल पूछने का समय एक दिन आये बगैर रहेगा नहीं। एक के बाद एक अनेक संस्कृतियां आयीं और गयीं, लेकिन प्रगति की बड़ी बड़ी बड़ाईयों के बावजूद भी मुझे बार-बार पूछने का मन होता है। कि "यह सब किसलिये ? उसका प्रयोजन क्या?" डार्विन के समकालीन वॉलेस ने कहा है कि तरह-तरह की नयी-नयी खोजों के बावजूद पचास वर्षों मे मानव-जाति की नैतिक ऊँचाई एक ईंच भी बढ़ी नहीं। टॉलस्टॉय ने यही बात कही, ईसा मसीह, बुद्ध और मोहम्मद पैगंबर सभी ने एक ही बात कही है। महात्मा गांधी पागल दौड़: गांधी | Mad Rush Gandhi THE MAD RUSH The people who are in the mad rush today, increasing their wants senselessly suppose that they are enhancing their importance and real knowledge. A day will come when they will exclaim "What have we been doing??" One after anot